Friday, September 23, 2011

कल्पना


एक बियाबान टापू पर मै और वो खड़े थे
सूरज क्षितिज की ओर बढ़ रहा था
हम निश्चिंत होकर एक दुसरे क पास खड़े थे
और नदी के पानी में कभी सूरज को देख रहे थे
तो कभी नदी में बने हुए अपने प्रतिबिम्बों को
नदी की लहरें हवाओं के साथ मिलकर
हवा की दिशा में ही अपना रास्ता बना रही थी
ऐसे ही उन दोनों के मिलन को देखकर
अपने आने वाले कल की हम कल्पना कर रहे थे

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