Saturday, December 5, 2009

कल की रोटी


जब आधी दुनिया सोती है
तब कुछ ऐसी आंखे होती हैं
जिनमें नींद तो होती है मगर
एक चिन्ता होती है वो "रोटी की"
वो आँखें होती हैं स्टेशन पर किसी कुली की
वो आँखें होती हैं ट्रकों पर सामान ढोने वालों की
वो आँखें होती हैं सर्द रातों में रिक्शा चलाने वालों का
वो आँखें होती हैं अपार्टमेंट के सामने पहरा देते चौकीदारों की
अग़र सीधी बात करें तो वो आँखें होती हैं
अगले कल की रोटी का जुगाड करने वालों की
उन मज़दूरों की जो रात और दिन
खटते हैं सिर्फ़ पापी पेट की खातिर......

Thursday, November 19, 2009

बढ़ाते रहो दुनियाँ में अत्याचार और पाप



बढ़ाते रहो दुनियाँ में अत्याचार और पाप
जब तक है दम, तब तक सहेंगे हम और आप
अब वक्त है अत्याचार और आताताइयों के बीच रहने का
कुंठित और दबकर समाज में जीने का
इस समाज के बनते नए अपराधी है हम
साथ देते है उन्ही का जो करते नीच कर्म
दाऊद इब्राहिम का महान भारत देश
जिसमें चला हत्या और लूट का चलन
हम भी करते हैं इन्ही को शत्-शत् नमन।

Wednesday, November 18, 2009

सबसे बड़ा मौसम


सबसे ज्यादा बड़ा मौसम मंहगाई का है ।
गर्मी जब शुरू हुई मंहगाई साथ लाई,
बरसात आई पर मंहगाई को धो नही पाई।
गर्मी बरसात थककर हार गए ,
तब सर्दी आई मगर वो भी कुछ कर नही पाई ।
भइया मंहगाई के प्रकोप से सर्दी भी अकड़ गई ,
और तीनो मौसम पे मंहगाई भरी पड़ गई ।

Friday, November 13, 2009

देश का रूल

आइये देखते है सरकार का गड़बड़झाला
एस.टी.डी.एक पैसा प्रति मिनट,
तो दाल अस्सी रूपये किलो कर डाला
आइये देखते है सरकार का गड़बड़झाला ।
पहले तो पेट्रोल का दाम कर दिया कम,
दो महीने बाद दुगुना बढ़ाकर निकल दिया जनता का दम ।
सरकार की चाल अब हाथी सी हो रही है ,
और जनता कुत्ते की तरह रो रही है ।
जैसे हाथी जाता है तो कुत्ता भौकता रह जाता है ,
सरकार सर उठाकर कहती है हमारा क्या जाता है ।
सरकारी मंत्रीजी जहाज के इकोनामी क्लास को
कैटल क्लास बताते है ,
और बाद में माफ़ी मांगकर जनता को उल्लू बनाते है।
जनता भी जाती है इन बातो को भूल
अब तो देश का हो गया है रूल,
सरकार रोज़ बनाएगी जनता को अप्रैल फूल ।

Monday, October 5, 2009

विद्यार्थी व्यथा



कुछ महामानव विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कहलातें है.

स्टाफ रूम में बैठकर आपस में ही बतियातें है ।

कुछ चायपानी का लुत्फ़ ले रहे राजनीती गरमातें है ।

पर कक्षाएं लेने में वो बहुत-बहुत सकुचाते है ।

महामानवी भी नही है इस मामले में कम

अकड़ दिखाती फिरती थी चारो तरफ हरदम ।

महामानव की बात करे जो ऐसे बिरले होते है .

प्रोफेसर बनकर वो बस घर पर अपने सोते है ।

क्या होगा जो इनमे से गर ऐसा जीव निकल आए ,

जाकर कक्षाएं ग्रहण करे और अध्यापक का धर्म निभाए।

उसकी भी यहाँ दुर्गति होगी ,उस पर भी राजनीती होगी ।

फ़िर ऐसा चक्रव्यूह रचेगा अध्यापक छात्र दोनों फसेगा ।

अभिमन्यु बनेगा कौन-कौन इससे अच्छा है रहो मौन ...................