Monday, October 5, 2009

विद्यार्थी व्यथा



कुछ महामानव विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कहलातें है.

स्टाफ रूम में बैठकर आपस में ही बतियातें है ।

कुछ चायपानी का लुत्फ़ ले रहे राजनीती गरमातें है ।

पर कक्षाएं लेने में वो बहुत-बहुत सकुचाते है ।

महामानवी भी नही है इस मामले में कम

अकड़ दिखाती फिरती थी चारो तरफ हरदम ।

महामानव की बात करे जो ऐसे बिरले होते है .

प्रोफेसर बनकर वो बस घर पर अपने सोते है ।

क्या होगा जो इनमे से गर ऐसा जीव निकल आए ,

जाकर कक्षाएं ग्रहण करे और अध्यापक का धर्म निभाए।

उसकी भी यहाँ दुर्गति होगी ,उस पर भी राजनीती होगी ।

फ़िर ऐसा चक्रव्यूह रचेगा अध्यापक छात्र दोनों फसेगा ।

अभिमन्यु बनेगा कौन-कौन इससे अच्छा है रहो मौन ...................

6 comments:

  1. इस आपाधापी में मौन वाकई सर्वोत्तम है, बधाई हो सुन्दर रचना के लिये, कृपया यूँ ही लिखते रहिये
    सादर

    चन्दर मेहेर
    lifemazedar.blogspot.com

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  2. Being a Real professor,I think the situation is not so worsend but I must appriciate your efforts to write a poem and will to express yrself.
    thanks,
    dr.bhoopendra jeevansandarbh.blogspot.com

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  3. ---- चुटकी----

    राहुल थके
    प्रियंका ने
    चलाई कार,
    अब तो
    यह भी है
    टीवी लायक
    समाचार।

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  4. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें

    कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
    वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
    डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
    इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
    और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये!!.

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