एक बियाबान टापू पर मै और वो खड़े थे
सूरज क्षितिज की ओर बढ़ रहा था
हम निश्चिंत होकर एक दुसरे क पास खड़े थे
और नदी के पानी में कभी सूरज को देख रहे थे
तो कभी नदी में बने हुए अपने प्रतिबिम्बों को
नदी की लहरें हवाओं के साथ मिलकर
हवा की दिशा में ही अपना रास्ता बना रही थी
ऐसे ही उन दोनों के मिलन को देखकर
अपने आने वाले कल की हम कल्पना कर रहे थे
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