जब टीवी जगत का पदार्पण भारत में हुआ और खासकर टीवी दुनिया में जब विभिन्न रंग रूप के नए नए न्यूज़ चैनेल्स खुले तब कहा जाने लगा की अब अख़बार की महत्ता घट जाएगीपर ऐसा नहीं हुआ और अख़बार अपनी महत्वपूर्ण जगह बनाये रखा, और आज भी बनाये हुए है। ये तो भूमिका थी मेरी बात शुरू करने की , मगर मै आज यह सोच रहा था की टीवी जगत की प्रमुख हस्तियाँ चाहे वह पुण्य प्रसून वाजपेयी हो चाहे आशुतोष जी हो या कोई और। अगर वह चाहे तो टीवी के माध्यम से गरज कर क्या कुछ नहीं कर सकते पर जब उन्हें वाकई मे कुछ कहना होता है तो वह वापस प्रिंट मीडिया का यानि अखबार का सहारा लेते हुए नज़र आतें है । क्या अगर वह चाहें तो टीवी पर एक पैकेज बना करअपनी बातोंको नहीं कह सकतें ? ये सोचने पर हँसी आती है , और ऐसा नहीं है की वो नहीं कर सकते , लेकिन अगर व ऐसा करेंगे तो टी आर पी का तो फर्क जरूर पड़ेगा जैसा की आज एक बड़े चैनेल के साथ हो रहा है, जो केवल खबर और ऐसी स्टोरी दिखता है जिसका की यथार्थ से सरोकार होता है , न की भूत-प्रेत और बोलीवुड से। पिछले दिनों एक अख़बार में प्रसून जी ने एक लेख द्वारा सरकार पर मीडिया के इस्तेमाल पर तीखी टिप्पणी किया था और ये वाजिब भी है , की किस तरह सरकार अपने सुशासन का प्रचार मीडिया के जरिये करती है ,और उसमे जनता के लाखों रूपये फूँक दिए जाते हैं। मगर ये बातें प्रसून जी इलेक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से कहते तो उसका असर जनता पर और भी जोरदार ढंग से पड़ता। खैर टीवी न सही अखबार तो ये भूमिका बखूबी निभा रहा है, और बड़े लोगों को ''पत्रकारिता '' करने का मौका दे रहा है। और कहे की बाल की खाल उधेड़ रहा है तो सही ही है। चलो कम से कम अखबार से तो वास्तविकता का पता चल रहा है.