Wednesday, October 3, 2012

ख्वाहिशों के समंदर


ख्वाहिशों के समंदर में डूबते उतराते
पंख होते तो हम आसमां में उड़ जाते
आसमां के आगे का जहाँ भी देख आते
पंख होते तो हम आसमां में उड़ जाते
अंतर्मन के झंझावातों से ऊपर होकर
अपनी अलग ही दुनियां में खोकर
ख्वाहिशों के समंदर में डूबते उतराते
न छल न कपट न राग न द्वेष
होता जहाँ इक सादा परिवेश
ना लूट न चोरी न हिंसा न चकारी
न होती जहाँ चंद सिक्को की खातिर मारामारी
आओ इक ऐसा जहाँ हम बनाये
इन्सां को इंसान बनना सिखाएं
ख्वाहिशों के समंदर में डूबते उतराते
पंख होते तो हम आसमां में उड़ जाते
............................आशीष शुक्ला